Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मंजिल

 

मंजिल को पाने के खातिर ,
अपनी राहों में थक कर बैठ जाऊ ,
ये मुझे गवारा नहीं !
मंजिल मेरी दूर है मगर,
डर कर अपने कदम पीछे हटाऊ,
ये मुझे गवारा नहीं !
सूरज की रोशनी बहुत तेज़ है मगर ,
उन रोशनी से अपनी नजरे चुराउ,
ये मुझे गवारा नहीं !
राहों के काँटों ने पैर छलनी है किया,
उन काँटों से डर पुष्पों को चाहू ,
ये मुझे गवारा नहीं !
राहों में मिली निराशाए मुझे लेकिन,
निराशाओ से डर अपनी आशाओ को भूल जाऊ,
ये मुझे गवारा नहीं !
मेरे पग से लहू बहा है मगर,
उन लहू को देख कर डर जाऊ ,
ये मुझे गवारा नहीं !
राहे मेरी सुनसान है पड़ी ,
इन सन्नाटो से डर कोई साथी चाहू,
ये मुझे गवारा नहीं !
ये राहे मुझे डराती है मगर,
इस डर से अपनी निडरता खो दू,
ये मुझे गवारा नहीं !
था खुद पर विश्वास है खुद पर यकीं,
ये डरावनी राहे डरेंगी मुझसे एक दिन ,
इनका भयंकर सामना होगा मुझसे ,
ये सोच अपना इरादा बदल दू ,
ये मुझे गवारा नहीं !
इन राहों पर चलकर मंजिल मिलेगी,
खुशियों की मुझको खबर मिलेगी,
मेरे जीवन में खिलेगा सवेरा नया,
उन सवेरो की चमक में अपनी,
अँधेरी रातो को भूल जाऊ,
ये मुझे गवारा नहीं !

 

 

 

meri ye kavita mere swargiya pitaji ki yaad gari me

 

Rohini Tiwari

 

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