किसी सिक्के के हमेशा दो पहलु होते है, हर परिस्थिति के हमेशा दो रूप होते है ! और उससे होने वाले परिणाम भी दो होते है !
एक होता है सकारात्मक पहलु और दूसरा होता है नकारात्मक पहलू !
कभी कबार हमें समझ में नहीं आता कि इन परिस्थितियो से कैसे निपटा जाये ? जब हम ये जानते हो कि यह कार्य हमें नियमो पर आधरित या नियमो के मुताबिक ही करना होगा ! तब समस्या और जटिल होती है !
जैसे आज की परीक्षा पद्धति ग्रेडिंग सिस्टम पर आधारित है तो इस पद्धति से हमें क्या लाभ – हानि है ये हम अच्छी तरह जानते है लेकिन क्या यह सिस्टम पूर्ण रूप से सही है या पूर्ण रूप से गलत है न तो ये पूर्ण रूप से सही है न ही ये पूर्ण रूप से गलत है जब किसी भी बात का अनुभव हमें मिलता है तब उस बात को समझने में हमें काफी आसानी होती है और यदि उस समस्या से हम गुजर चुके हो तो और भी अधिक आसानी होती है उस समस्या का हल निकालने में ! परन्तु क्या इस ग्रेडिंग सिस्टम में यह सम्भव है कि इससे आनेवाली समस्यायों या होनेवाली त्रुटियों से हम बच जाये, नहीं बिलकुल नहीं जब बात शिक्षा की आती है तो आग कहीं भी लगी हो उसकी चपेट में या फिर उसकी चिंगारी कहीं न कहीं पूरे समाज को और पूरी शिक्षा पद्धति को स्पर्श जरूर करती है !
मै चर्चा कर रही थी ग्रेडिंग सिस्टम के सकारात्मक और नकारात्मक पहलु की तो पहले हम सकारातमक पहलू की बात करते है !
ग्रेडिंग सिस्टम के सकारात्मक पहलू :-
ग्रेडिंग सिस्टम के कई सकारात्मक पहलू है यह सिस्टम ६० और ४० पद्धति पर आधारित है जिसके अंतर्गत ४० अंको का प्रकल्प प्रस्तुत करना होता है और ६० अंको का प्रश्न पत्र हल करना होता है जिसे एक्सटर्नल और इंटरनल कहा जाता है एक्सटर्नल अर्थात ६० अंको का प्रश्न पत्र और इंटरनल अर्थात ४० अंको का प्रकल्प !
इसके अंतर्गत ४० अंको का प्रकल्प महाविद्यालय छात्रो को देता है और छात्र उस पर अपना कार्य करते है तब उन्हें वह अंक आसानी से मिल जाता है !
१) यदि कोई विद्यार्थी बहुत ज्यादा अच्छे अंक प्राप्त करने में असमर्थ हो तो उसे आसानी से उत्तीर्ण होने का सुनहरा मौका मिल जाता है !
२) और साथ ही यदि कोई अस्वस्थ हो जाये तो भी उसे प्रकल्प को बाद में प्रस्तुत करने का मौका मिल जाता है !
३) अधिक से अधिक छात्र इस पद्धति से पास होते है नापास होने की मात्रा बहुत कम हो जाती है !
४) महाविद्यालय का सहयोग मिलता है !
५) और साथ ही प्रकल्प का चुनाव भी महाविद्यालय करता है !
६) प्रकल्प का चुनाव होने के बाद उसमे भी छात्र अपने पसंद का प्रकल्प विषय का चुनाव कर सकते है !
७) छात्रो का आत्मविश्वास बढता है, और साथ ही व्यक्तित्व में निखार भी आता है !
८ ) भाषण कला विकसित होती है !
९) और शोध कार्यो के जरिये नए अनुभवो को सीखने का मौका मिलता है !
१०) छात्रो में समूह कार्य की वजह से एक उच्चतम दर्जे की प्रतिस्पर्धा होती है !
और भी बहुत सारे फायदे इस पद्धति से छात्रो को मिलते है !
अब हम इसके दूसरे पहलू पर नजर डालते है जो नकारात्मक पहलु है !
१) इस पद्धति से छात्रो का जितना भला होता है उतना बुरा भी हो सकता है या कह ले कि बुरा होता भी होगा !
२) छात्र लापरवाह भी हो सकते है !
३) इससे शिक्षको का कागजी काम काज बढ़ जाता है !
४) जो छात्र शिक्षक को प्रिय होगा उसे अधिक अंक मिल जायेंगे !
५)यहाँ भेदभाव का निर्माण भी होता है !
६) इसकी वजह से भेदभाव हुए छात्र के मन में कटुता उत्पन्न होगी !
७) प्रकल्प में अधिक अंक मिलने की वजह से वह अपनी स्वयं की पढाई पर ध्यान कम देगा !
८) जो छात्र पढ़ने में अच्छे है यदि उनका मन मुटाव किसी शिक्षक के साथ हुआ तो वे उसे अनुतीर्ण भी कर सकते है !
९) इससे छात्रो में डर और हीन भावना उत्पन्न हो सकती है !
१०) और कहीं न कहीं अभिभावको के लिए भी परेशानी हो सकती है !
इसके और न जाने कितने अनछुए पहलू हो सकते है ! कितने अनजाने स्पर्श हो सकते है जो हम जानते नहीं और उन स्पर्शो को महसुस नहीं कर सकते ! कई ऐसे संसय भी उत्पन्न होते है, जिन्हे हम ठीक तरह से समझ ही नहीं पाते !
अब आप ही सोचे और तय करे कि क्या किया जा सकता है यदि ऐसा कुछ हो जाये तो
किसी बच्चे के भविष्य से बढ़कर एक शिक्षक के लिए कुछ नहीं होता लेकिन जब बात उसके अपने ऊपर आती है तो वो भी कहीं न कहीं वह भी इस सिस्टम का मारा हुआ नजर आता है
इस तरह के सिस्टम को क्यों बनाया जाता है !
यदि भलाई है तो बुराई भी है !
और यदि बनाया गया भी है तो इसके सही पहलुओ को क्यों नजर अंदाज किया जाता है एक सर्वे होना चाहिए सारे महाविद्यालयो का उसके अंतर्गत सभी शिक्षको का साक्षात्कार भी होना चाहिए फिर छात्रो का भी उन्हें एक बहुत अच्छा वातावरण प्रदान करना चाहिए, और निडरता से अपने मन की बात को व्यक्त करने का अवसर भी प्रदान करना चाहिए !
किसी प्रकार का कोई दबाव या तनाव उनके आस पास नहीं होना चाहिए यदि इस तरह की कोई समस्या हमें दिखायी दे तो उसका निवारण तुरंत करना चाहिए, ताकि आगे चलकर कोई समस्या उत्पन्न न हो जाए !
लेकिन हाथी के दात दिखने के कुछ ओर और खाने के कुछ ओर होते है ! जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दिखता नहीं यही परिस्थिति ओर इसी का बोलबाला हर क्षेत्र में है और शिक्षा पद्धति भी पूरी तरह से इसी की जकड़न में जकड़ी हुई है !
लेकिन इस जकड़न से मुक्त होना होगा और सही सटीक और हर कसौटी पर खरा उतरनेवाला नियम बनाना होगा जो हर पहलू से निस्पक्ष हो तभी जाकर शिक्षा पद्धति में सुधार आएगा !
शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त बुराइयों को जानने के लिए पूरे समाज और शिक्षक वर्ग को एकजुट होकर कार्य करना होगा ! और सुनहरे अवसर और अच्छे भविष्य निर्माण की और कदम बढ़ाना होगा !
धन्यवाद !
तिवारी रोहिणी विश्वनाथ
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