राहों से राहे जोड़ती चली गयी,
कदमो की आहट मै सुनते चली गयी !
मंजिलो को मै सदा मोड़ते चली गयी,
कुछ कहते चली गयी कुछ सुनते चली गयी !
इन वीरानियो में सदा महफ़िल सजाते चली गयी,
कहते है कागज की फूलो से खुशबू नहीं आते,
मै कागज के फूलो में भी खुशबुओ को भरते चली गयी !
उन फूलो से महकाऊ जहा,जहा से मै बनाऊ कारवा !
उन कारवो से बनाऊ मै ऐसी महफ़िल की
उन महफ़िलो में आये जन्नत की रौनक !
इस जन्नत की रौनक को सारे जहा में फैलाकर,
इस सारे जहा को मै जन्नत बनाऊ !
सदा सुनती रहू अपने मन की आवाज,
उस आवाज को मै एक नया आगाज बनाऊ !
रोहिणी विश्वनाथ तिवारी
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