सब कुछ पास होकर भी,
कुछ अधुरा सा लगता है !
कुछ अनकहा लगता है ,
कुछ अनसुना लगता है !
पल पल एक कहानी बन रही है ,
हर पल एक उदासी छा रही है !
ऐसा क्यु लगता है जैसे,
नयी उलझन फिर शुरू हो रही है !
क्या करू इन उदासी को छिपाने के लिए ,
क्या करू इन उलझनों को मिटाने के लिए !
नयी मंजिलो को पाना चाहती हु मै,
नयी राहो को सजाना चाहती हु मै !
सारे अंधियारों को पीछे छोड़ ,
फिर नए उजालो को छूना चाहती हु मै !
रोहिणी विश्वनाथ तिवारी
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