हमारे देश में कभी मंदी और कभी तेजी आती जाती रहती है, और व्यापार में भी उतार – चढाव होते रहते है ! कई बार नफा - नुकसान होता है, कभी बहुत ज्यादा लाभ तो कभी बहुत ज्यादा हानि व्यापार के क्षेत्र में आती है, परन्तु आज एक क्षेत्र ऐसा है, जिसमे लाभ कम और नुकसान अधिक हो रहा है !
अब तक तो आप शायद समझ ही गए होंगे कि, मैं किस क्षेत्र के विषय में चर्चा कर रही हुँ !
यदि नहीं समझे तो चलिए मैं ही बता देती हुँ कि मैं किस बारे में बात करना चाहती हुँ !
मैं बात कर रही हुँ शिक्षा प्रणाली की, आज के शिक्षा की, आज के शिक्षा के स्तर की, और शिक्षा द्वारा बढ़ता और बाजारवाद के बदलते स्वरुप की !
क्या आज की शिक्षा का स्वरुप बाजारवाद नहीं है ?
आज की शिक्षा का स्वरुप ही बाजारवाद है ! आप कही भी देखे किसी भी नामचीन विद्यालय या कनिष्ठ महाविद्यालय हर जगह केवल शिक्षा बाजारवाद का ही रूप धारण कर रही है !
किसी भी विद्यालय में बिना डोनेशन के कोई काम नहीं होता, जिसे हम हिंदी में कहे तो चंदा या दक्षिणा या भेट या सीधे से दान कहा जा सकता है !
साक्षात्कार का ढकोसला निभाते हुए कई प्रकार के लालच को दिखाते हुए विद्यालयो की फीस बढ़ती, घटता – बढता अभ्यासक्रम उसी प्रकार इस महंगाई में बढ़ती जरूरते तिल का ताड़ होती नजर आती है ! परन्तु मजबूरी बस शिक्षा को ग्रहण करने का सपना आँखों में सजाये लोग डोनेशन की मार को झेल रहे है ! क्या शिक्षा बिकाऊ है ? क्या शिक्षा को खरीदा जा सकता है ? क्या ज्ञान को बेचा जा सकता है ? ये सारी समस्याए प्रश्न के रूप में आँखों के सामने नृत्य करते हुए दर्शित होते है !
कुछ लोग जो शिक्षा को ग्रहण करने में असमर्थ होते है, क्या लोग इस तरह की रीती के अनुसार शिक्षा को ग्रहण कर पाएंगे ? आज के बच्चे शिक्षा केवल नाम के लिए और डिग्रियों के लिए ग्रहण करते है ! शिक्षा से सम्मान, शील, विनंती, और नम्रता क्या सही मायने में ये बाजारवाद उन्हें दे पाता है ? बहुत बड़ा प्रश्न है ? परन्तु उत्तर नहीं मिलता !
केवल चकाचौंध और दिखावे की शिक्षा है ये बाजारवाद शिक्षा !
जो बच्चे सही मायने में कुछ कर गुजर चाहते है, शिक्षा के बल पर परन्तु असमर्थता उनके पैरो में कही न कही बेड़िया बाँध देती है, शिक्षा आज बाजारवाद के हत्थे चढ़ी है ! अमीरो के पैरो पड़ी है !
केवल दो व्यापारी है जो शिक्षा का व्यापार कर रहे है ! एक जो शिक्षा बेच रहा है, और दूसरा खरीददार जो इसकी मुह मांगी कीमत लगा कर खरीददार बना है !
जो पैसे के बल पर केवल शिक्षा के नाम की डिग्रिया खरीद रहा है, इसमें केवल दो ही खिलाडी नजर आते है !
एक बाजारवाद को बढ़ावा देनेवाला और दूसरा साथ देनेवाला, इस तरह का बाजारवाद देखकर भी सब कुछ जानते हुए सब अंधे और गूंगे बने हुए है !
क्या आँखों की रौशनी कभी ओझल नहीं होती ? क्या आवाज कभी करुण नहीं होती ?
नहीं, होती है ! परन्तु इन आवाजो को कोई सुनना नहीं चाहता, कोई इन पर उंगलिया उठाना नहीं चाहता ! फिर भी एक बहुत बड़ा प्रश्न उठ खड़ा होता है, व्यवस्था और सरकार के नाम पर शिक्षा का स्वरुप दिन ब दिन क्यों बिगड़ता जा रहा है ! आख़िरकार इसका अंत है या नहीं ? शायद नहीं क्यूंकि सब मोम के पुतले बने सब चुप चाप देख रहे है ! बस गुलामी की आदत अभी तक गयी नहीं कोई एक उठना भी चाहे तो उसे दबा दिया जाता है, डोनेशन के नाम पर संस्था के नाम पर और न जाने क्या - क्या क्लासेस, कोचिंग, और प्राइवेट ट्यूशनस इन सबका ध्येय केवल धन अर्जित करना है ! केवल पैसा ही पैसा हर जगह होता है ! अपने देश की अपनी जनता की या अपने भविष्य की किसी को भी पड़ी नहीं है ! तो क्या यह बाजारवाद नहीं हुआ ? शिक्षा में केवल अपना ही फायदा अपना ही स्वार्थ देखा जाता है ! परन्तु लोग ये भूल गए शिक्षा सर्वजन हिताय है ! और सभी के हित के लिए ही होनी चाहिए न कि इसे व्यापार या बाजारवाद का स्वरुप देकर अनहित की राहो पर ले जाना चाहिए ! लेकिन पता नहीं सबको क्या हो गया है कोई भी इस सच्चाई को समझना नहीं चाहता परन्तु आज नहीं तो कल इस बाजारवाद की ज्वालामुखी फटेगी और अपने अंदर पूरे समाज, देश और पूरी व्यवस्था को जलाकर खाक कर देगी ! एक धधकता हुआ आग का गोला केवल नजर आएगा और सब भष्म हो जाने के बाद केवल पश्चाताप की राख हाथो में रह जायेगी ! इसीलिए समय रहते ही सम्भलना, सुधारना और सतर्कता साथ ही साथ इस व्यवस्था को नकारना ये ही हमें इस बाजारवाद को रोकने में मदद करेगा ! साथ ही नयी शिक्षा प्रणाली स्वदेशी भाषा में शिक्षा की मांग करना ही हमें इस आतंक को रोकने में मदद कर सकती है !
कबीरदास जी का एक दोहा है !!
‘कबीरा खड़ा बाजार में , लिए लकुटी हाथ’ !
‘जो घर जारे अपना, चले हमारे साथ’ !!
यही स्वरुप हर व्यक्ति को धारण करना होगा परन्तु यह कोशिश करनी होगी कि हम इरादे इसी तरह के रखे की हम कामयाब हो लेकिन किसी का घर न जले ये रवैया तो व्यवस्था और आज की शिक्षा प्रणाली के लिए उठाना चाहिए ! समाज के बेकसूर लोगो के लिए नहीं लेकिन जो इसमें साथ दे रहा वो भी तो कहीं न कहीं दोषी ही हुए जिसमे हम , आप और सारा समाज शामिल है परन्तु गौर फ़रमाया जाए तो एक बात और नजर में आती है ! कबीर जी का एक और दोहा है !
‘कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लकुटी हाथ’ !
‘ना काहु से दोस्ती, ना काहु से बैर’ !!
यही रवैया सबने अपनाया है ! परन्तु इस रवैय्ये से कहीं हम हमारा और समाज का ही नुकसान कर रहे है ! अब हमें जागरूक होने की आवश्यकता आ गयी है !
आख़िरकार कब तक सहेंगे ? अपनी सोच और मानसिकता बदलनी होगी शिक्षा की नयी प्रणाली की मांग करनी ही होगी !
शिक्षा सर्वदा पूज्यनीय है ! शिक्षा का बढ़ता व्यापार खत्म करना होगा ! शिक्षा के दलालो के मुखौटे उखाड़ कर फेकने होंगे ! और यह तभी सम्भव है जब हम अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाएंगे, ये बाजारवाद एक भारी जंगले है और इस जंगल में केवल पैसो के ही पेड़ उगाये जा रहे है और उन पैसो से फल खरीदे जा रहे है जिसमे अंततः केवल विनाश ही है ! इससे पहले कि ये हमें मार डाले, हमे इसकी जड़े काटनी होगी !
बस एक चिंगारी भड़कानी होगी, धीरे - धीरे पूरे जंगले में आग फ़ैल जायेगी और अग्नि देव अपना धर्मं स्वयं निभाएंगे परन्तु यह चिंगारी लगाये कौन ? या फिर कौन इसका रूप धारण करे ? कोई आएगा किसी फ़रिश्ते का इंतज़ार करना और एक दिन सब ठीक हो जायेगा या फिर कोई समाज सुधारक इसके लिए कदम उठाएगा ये सोचना गलत है ! हम समाज में रहते है ! और हमे पूरा हक़ है कि हमारे समाज की बुराइयों को हम सब मिलकर दूर करे ! आख़िरकार हमें भी तो अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए तभी तो हम सच्चे और अच्छे नागरिक बनेंगे !
और हमें स्वयं में एक सुधारक बनना होगा, और सभी को जागृत करना होगा !
इस व्यवस्था को नकारना होगा और अपनी जिम्मेदारी समझकर देश के नागरिक का कर्तव्य समझकर पूरा करना होगा तब जाकर शिक्षा की यह व्यवस्था बदलेगी इनके कारण हो रहे दुषपरिणामो को जागृत करना होगा और सबसे बड़ी बात स्वयं को जागृत करना ! फिर धीरे धीरे सभी को जागृत करके इस बाजारवाद के बढ़ते व्यापार को खत्म करना होगा ! तभी हमारे कदम सफलता की राहो पर चलेंगे और हम उचाईयों को छू पाएंगे !
अंततः केवल कहना और कहकर चुप हो जाना और ऐसे ही सुन लेना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन सुनकर ध्यान देना उस पर गौर करना और अपना पक्ष रखना ही समझदारी है स्वयं समझना कि आख़िरकार इन समस्यायों कि जड़ क्या है ? और जड़ को समझकर उसे ही काटने में समझदारी है न कि केवल हो हल्ला करना इस सबसे कुछ नहीं होगा !
परन्तु समझदारी के साथ उठाया हुआ कदम सफल ही होता है और प्रयास करने पर हम कामयाब भी होंगे और शिक्षा के बाजारवाद के रूप को बदल पाएंगे और शिक्षा का रूप शिक्षा ही होगा जो सही मायने में हमें शिक्षा प्रदान करेगा और हमें सही तरीके से शिक्षा भी प्राप्त होगी और शिक्षा प्रणाली शिक्षा व्यवस्था आदि में सुधार होगा !
इस सुधार से हमारा भी सुधार होगा इस समाज का भी और इस देश का भी सुधार होगा
हमारा सत्य कि तरफ बढ़ाया हुआ हर कदम कुछ बदलाव लेकर रौशनी के साथ चमकती हुई सफलता को गोद लेकर आएँगी और हमें उसका स्वागत दिल खोलकर सच्चे मन से किसी शिक्षा के मंदिर में ही सरस्वती माँ के ही रूप में सहनशीलता, नम्रता एवं वंदना के साथ करना होगा !
यह सपना तभी साकार होगा जब हम इस सपने को साकार करने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाएंगे !
आपका और हमारा सच्चाई की और बढ़ाया हुआ हर कदम सफल होगा यही विश्वास मन में कायम रखते हुए हम सभी को आगे बढ़ना होगा और नयी शिक्षा प्रणाली और व्यवस्था की मांग करनी होगी जिससे हमारा समाज सदृढ़ बने और भावी पीढ़ी समझदार लेकिन उसके पहले हमें जागरूक और समझदार बनना होगा !
धन्यवाद !
तिवारी रोहिणी विश्वनाथ--
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