Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शिष्टाचार :- जीवन का आधार

 

आज का दौर एक आधुनिक दौर है, आज हमारा देश बहुत तरक्की कर रहा है, हम २१ वी सदी में जी रहे है ! लेकिन कहते है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है कहीं न कहीं यह कथन सत्य साबित होता है, लेकिन कुछ अच्छा पाने के लिए यदि जो हम खो चुके उसे दोबारा हासिल कर ले तो खुशियों में चार चाँद लग जाता है, लेकिन कुछ कीमती पाने के लिए यदि हम अपनी कोई अनमोल वस्तु खो दे और उसे दुबारा न पा सके तो कितना संगीन दुख होता है !

 

 

इसी तरह हमने बहुत तरक्की कर ली हम चाँद तक जा पहुंचे लेकिन हम अपनी असली पहचान खोते जा रहे है या ये कहना गलत नहीं होगा कि हमने अपनी असली पहचान खो दी हम भारत वासी है, हमारा देश गावों का देश है, हम कृषि प्रधान देश के वासी है, हमारे यहाँ हर वृक्षों की पूजा की जाती है हम अग्नि से लेकर जल, धरती से लेकर गगन और सजीवों से लेकर निर्जीवों तक की पूजा अर्चना करते है, हम अपने मेहमानो को भगवान का दर्जा देते है क्यूंकि ये सब हमारे आचरण में है या कहूँ था, क्यूंकि ये हमारे शिष्टाचार का विषय है ! मुझे याद है पहले मै कहीं अपने दादाजी के साथ जाती थी तो द्वार पर लिखा होता था स्वागत है आपका लेकिन आज लिखा होता है कुत्तो से सावधान ! जरा सोचिये हम अपनी संस्कृति से कितने दूर हो गए !

 

 

शिष्टाचार :- शिष्ट + आचार = शिष्टाचार - अर्थात विनम्रतापूर्ण एवं शालीनतापूर्ण आचरण ! शिष्टाचार की परिभाषा यह है - शिष्टता पूर्ण आचरण और व्यवहार , ऐसे आचरण जो साधारणतया एक सामाजिक प्राणी से अपेक्षित हो ! शिष्टाचार वो आभूषण है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है अन्यथा अशिष्ट मनुष्य तो पशु की श्रेणी में गिना जाता है ! मानव होने के नाते मनुष्य को शिष्टाचार का आभूषण अवश्य ही धारण करना चाहिए ! शिष्टाचार ही सदाचार की कसौटी है !

 

 

व्यक्ति अपने शिष्टाचार से ही सबका आदर और स्नेह पाता है ! शिष्टाचार का हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, कहने को तो ये बाते बहुत छोटी होती है लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण होती है ! मै इसी अनमोल रत्न की बात कर रही थी, हमने तरक्की बहुत कर ली लेकिन हम अपनी असली पहचान हमारी विरासत को खो रहे है ! शिष्टाचार हमारी संस्कृति का ही एक रूप है !

 

 

और हम अपने शिष्टाचार खोते जा रहे है और हमें अपने इस अनमोल रत्न को खोना नहीं चाहिए ! बच्चन जी कहते है, कि कोशिश करनेवालो की हार नहीं होती हम सब भारतीय मिलकर यदि फिर से भारत को सोने की चिड़िया बनाने का सपना देखे और उसे साकार करने में लग जाए तो ये संभव है लेकिन आधुनिकता की चपेट में आकर नहीं शिष्टाचार पूर्वक हम ये कर सकते है ! मै आधुनिकता के खिलाफ नहीं समय के साथ हमें अपने अंदर परिवर्तन लाना चाहिए लेकिन अपनी मूल संस्कृति को भूलकर या उसे नकार कर नहीं ! हमारे यहाँ विविधता में एकता पायी जाती है और ये शिष्टाचार का सबसे बड़ा उदहारण है, लेकिन अन्य देशो के लिए इस उदाहरण को कहीं न कहीं हम स्वयं ही समाप्त करते जा रहे है !

 

 

शिष्टाचार वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर्श और प्रेरणाश्रोत बनाता है यदि अशिष्टो की भीड़ में एक भी शिष्टाचारी है तो वह अपना मुह खोलते ही अलग पहचान में आ जायेगा और वह अन्य को भी शिष्टाचारी बना सकता है !

 

 

शिष्टाचार से ही मनुष्य को जीवन में प्रतिष्ठा एवं पहचान मिलती है और वह भीड़ में भी अलग ही नजर आता है शिष्टाचार का हमारे जीवन में बहुत ही महत्तवपूर्व स्थान है यह हमारे जीने की कला को दर्शता है, और साथ ही यही हमारे जीवन का आधार भी होना चाहिए ! जिसके पास शिष्टाचार है उसके पास सब कुछ है, लेकिन जिसके पास नहीं है, उसके पास अपार सम्पति हो लेकिन शिष्टता न हो तो वह गरीब होता है शिष्टाचारी मनुष्य सदा अपनी पहचान अलग ही रखते है वे लाखो की भीड़ में भी अलग ही पहचाने जाते है शिष्टाचार का जीवन में बहुत महतवपूर्ण स्थान है !

 

 

हम और आप हमारे बात करने भर से ही हम अपने पूरे व्यक्तित्व की झलक की प्रस्तुति दे देते है सामने वाला समझ जाता है की हम क्या है ?

 

 

जिस प्रकार ‘मान का पान’ महत्वपूर्ण होता है तो उसी प्रकार हम सब शिष्टाचार जैसे अनमोल रत्न से दूर क्यों रहे ? ये सब बाते छोटी है लेकिन बहुत महत्वपूर्ण है ये छोटी बातें जीवन में बहुत दूर तक साथ देती है !

 

 

लोग अमरत्व की और भागते है और सोचते है की वो नहीं मरेंगे क्या धन सम्पति आदि हासिल करना अमरत्व है ? ये शरीर नाशवान है, हमारे साथ ईश्वर के दरबार में कुछ नहीं जाता केवल शिष्टाचार ही हमारे साथ जाता है और यहीं शिष्टाचार ही हमें लोगो के दिल में और समाज में जीवित बनायें रखता है !

 

 

शिष्टाचार एक परिचय है यह एक दर्पण है जिसमे मनुष्य अपना प्रतिबिम्ब देखता है ! शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है चाहे वह गुरुजनो के समक्ष हो या परिवार में हो या फिर समाज में हो या वह अपनी मित्र मंडली में हो !

 

 

अगर कोई शिक्षित हो लेकिन उसमे शिष्टाचार न हो तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है क्यूंकि जब तक समाज में वह लोगो को सादर सत्कार नहीं करेगा सभ्यता का परिचय नहीं देगा तब तक लोग उसे मुर्ख समझेंगे जबकि एक अनपढ़ व्यक्ति यदि उसमे शिष्टाचार हो तो वह अपनी समझदारी का परिचय प्रस्तुत कर देता है ! शिष्टाचार ही सदाचार की कसौटी है !

 

 

शिक्षा मनुष्य को यथेष्ट मार्ग पर अग्रसर करती है ! लेकिन यदि मनुष्य पढ़ ले और शिक्षा का अर्थ न समझे तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है !

 

 

एक अनजान व्यक्ति एक परिवार में अपने शिष्ट व्यवहार से वह स्थान पा सकता है जो परिवार के घनिष्ट संबंधी भी नहीं पा सकते ! परिवार के सदस्य का अशिष्ट आचरण उसे परिवार से तो दूर करता ही है साथ ही वह उस समाज से भी दूर हो जाता है जिस समाज में वह रहता है शिष्ट व्यवहार मनुष्य को उचाईयों तक ले जाता है शिष्ट व्यवहार के कारण मनुष्य का कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाता है साथ ही आसानी के साथ हो जाता है शिष्टाचारी मनुष्य सदैव शीघ्र ही लोगो के आकर्षण का केंद्र बन जाता है लोग भी उससे बात करने में उसके मित्र बनने में रुचि दिखाते है एक शिष्टाचारी मनुष्य अपने आस पास के लोगो को भी शिष्टाचारी बना देता है शिष्टाचार एक ब्रह्माश्त्र है जो अँधेरे भी अचूक कार्य करता है अर्थात शिष्टाचार अंधरे में भी आशा दिखाने वाला मार्ग है !

 

 

किस समय कहा पर किसके साथ कैसा व्यव्हार करना चाहिए उसके अपने अपने ढंग होते है हम जिस समाज में रहते है हमें अपने शिष्टाचार को उसी समाज में अपनाना पड़ता है क्यूंकि इस समाज में हम एक दूसरे से जुड़े रहते है ! जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से जुड़े रहते है ठीक इसी प्रकार पूरे देश में, समाज में ,हम जहा भी रहते है एक विस्तृत परिवार का रूप होता है वहाँ भी हम एक दूसरे से जुड़े हुए होते है एक बालक के लिए शिष्टाचार उसी समय शुरू हो जाती है जब उसकी माँ उसे उचित कार्य करने के लिए प्रेरित करती है जब वह बड़ा होकर समाज में कदम रखता है तो उसकी शिक्षा प्रारंभ होती है यहाँ से उसे शिष्टाचार का उचित ज्ञान प्राप्त होता है और यहीं शिष्टाचार उसके जीवन के अंतिम क्षड़ों तक साथ रहता है यहीं से एक बालक के कोमल मन पर अच्छे बुरे का प्रभाव आरम्भ होता है अब वह किस प्रकार का वातावरण प्राप्त करता है और किस वातावरण में स्वयं को किस प्रकार ढालता है वही उसको इस समाज में उचित अनुचित की प्राप्ति करवाता है !

 

 

हमारे धर्म ग्रंथो में वेदो में पुराणो में यहाँ तक की हमारे समाज के महान व्यक्ति, साधु संत, कबीरदासजी, रहीमदास जी, तुलसीदास जी के ऐसे कई दोहे है जो हमारे जीवन को शिष्ट बना सकता है बस थोड़ा प्रयास की जरुरत है !

 

 

आइये देखते है उन दोहो की झलकियाँ !

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन एक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

बुरा जो देखन मै चला बुरा न मीलिया कोय !

जो दिल खोज आपना मुझसा बुरा न कोय !!

बोली एक अनमोल है जो कोई बोले जानि !

हिये तराजू तौली के तब मुख बहार आनि !!

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।

 

 

 


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

 

 

 


बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंक्षी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

 

 

 


ये दोहे हमारे दर्पण का कार्य करती है और ये दर्पण बिलकुल साफ़ है इनमे कोई धुंधलापन नहीं है और कहा जाता है , दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता !

 

 

हमें भी अपने जीवन में इन दोहो का सार अपनाकर शिष्टाचार के रंगो से अपना जीवन रंगकर एक आदर्श भरी मोती की माला पिरोनी चाहिए तथा बड़ी विनम्रता के साथ अपने जीवन में इस माला को धारण करना चाहिए और साथ ही इस माला में खुशियां, प्रेम, स्नेह के सुगन्धो को भी भर देना चाहिए ! जिससे हम अपने आस पास के वातावरण को भी सुंगंधित बनाये और साथ ही हमारे जीवन को शिष्टता के फूलो से महकाए ! और अपने घर आँगन में फैले शिष्टता के उपवन से ओरो का भी जीवन सवारे महकाए और चमकीले रंगो से सजाये !

 

 

शिष्टाचार के कई सारे पहलू होते है आइयें देखते है उन पहलुओ को !

 

 

1. घर में शिष्टाचार !

२. मित्रो से शिष्टाचार !

३.आस पड़ोस संबंधी शिष्टाचार !

४.उत्सव संबंधी शिष्टाचार !

५. समारोह संबंधी शिष्टाचार !

६. भोज इत्यादि संबंधी शिष्टाचार !

७. विद्यार्थियों का गुरुजनो और शिक्षको के प्रति शिष्टाचार !

८.खान - पान संबंधी शिष्टाचार !

९. मेजबान एवं मेहमान संबंधी शिष्टाचार !

१०.परिचय संबंधी शिष्टाचार !

११. बातचीत संबंधी शिष्टाचार !

१२. लेखन आदि संबंधी शिष्टाचार !

१३. अभिवादन संबंधी शिष्टाचार !

 

 

 

इसी तरह हमारे जीवन में और कई सारी बाते है जिन पहलुओ में शिष्टाचार के साथ हमें अपने जीवन में आगे बढ़ना होता है ! और हम सफल तो कई बार हो जाते है लेकिन यदि शिष्टता के साथ जीवन को जिया जाए तो हम सार्थक सिद्ध होते है !

 







शिष्टाचार एक कला है हमें उसे सीखना चाहिए संगीत है हमें उसे सरगम की तरह गुनगुनाना चाहिए शिष्टाचार भारतीय संस्कृति का मूल है और हमें इसे जड़ से बनाये रखना चाहिए !

 

 

धन्यवाद !

तिवारी रोहिणी विश्वनाथ !

 

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