Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सोचा न था मंजिले यु दस्तक देंगी मेरी

 

सोचा न था मंजिले यु दस्तक देंगी मेरी,
सोचा न था राहे यु इंतज़ार करेंगी मेरा !
देखते देखते ही पल यु गुजर गए,
किससे कहे इन पलो में क्या है मेरा !
एक नए सवेरे की चाह में,
एक नए उजाले की राह में,
चमकती हुई धुप में राहे है मेरी !
खिलखिलाती रोशनी से गुजरती राहे मेरी,
मंजिले मेरी गुनगुनाती सी है ,
हौसले मेरे साज छेड़ते से है!
मंजिलो और हौसलों की उड़ान भर ,
मेरी कदमो की आहट कुछ कहते से है !

 

 

 

रोहिणी विश्वनाथ तिवारी

 

 

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