Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शिक्षक

 

शिक्षक कृपा है, शिक्षक दिशा है,
शिक्षक ही दाता शिक्षक विधाता,
है मन की प्रेणना संदर्भ धारणा,
इसमें बसा है अमृत सुधा सा ।
फूल की महक है मकान की फलक है,
अज्ञेय अजेय अतिथि अमर है,
हितैषी अनादि अदृष्य अगम है,
अनंत अगम्य अदम्य अजर है ।
अन्धे की लाठी है कहने को माटी,
जनम है मरन है निरकार साथी,
मौसम की रौनक है हिन्दी में मानक,
पयोध पयोधर मनन मृदुभाषी ।
माता के आँचल में जैसे आंखें है मूंदे,
सदियों के प्यासे को राहत की बूँदें,
खिलते चेहरों की वह मुस्कान ऐसे,
सांसो में छुपा एक संगीत जैसे ।
उन एहसासो को महसूस करते ही,
सिर आदर से झुक जाता है,
हर मीठी मीठी बात पर,
वो समझाना याद आता है ।
ताउम्र रहेगा याद मुझे,
वे पल और उनका सुंदरपन,
उन पल की यादें खीचे मुझको,
खिल खिल जाएँ मेरा मन
खिल खिल जाएँ मेरा मन

 

 


रोहित अवस्थी

 

 

 

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