Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्यार का पौधा

 

कितना रुलाओगे यार ,
तुम्हे हँसाना परेगा /
मेरे भींगे नयनों को आखिर ,
तुम्हे ही सुखाना परेगा/

 


कितना चुराओगे नज़र ,
यह जालिम जमाना है /
यहाँ हर मोर पे खरा ,
आशिक, मजनू , दीवाना है /

 

 

आखिर तुम्हे हंसकर नजर मिलाना परेगा ,
प्यासे नजरो कि प्यास तुम्हे ही बुझाना परेगा /

 

 

मत कर दोस्त तू देर ,
नयन से बूंद फिसलता है /
यद् जब भी आती तेरी ,
ह्रदय यह बहुत मचलता है /

 

 

कब तक छुपाओगे आखिर तुम्हे बताना परेगा ,
कह दी निगाहों से तो सामने भी जाताना परेगा /

 

 

डगर तो सब कठिन होते ,
पर मंजिल उसी से मिलता है /
सूर्य के प्रखर धुप सह कर ही,
कमल बहुत सुन्दर खिलता है /

 

 

रोपा जब प्यार का पौधा तो उसे पटाना परेगा ,
अँधेरा है जीवन मेरा तुम्हे दीप जलाना परेगा /

 



By:- Rohit kumar (B.A.LL.B 1st year student)
KIIT School of Law , KIIT University, Bhubaneswar.

 

 

संदर्भ :- " उसके इंकार के बाद मेरे अरमानो के आकाश में आशाओं के इन्द्रधनुषी रंग इसी
कविता के रूप में प्रस्फुटित हुआ था ..........जो आगे चलकर शत - प्रतीशत सही शीध्ह
हुआ ........"

 

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