रूई के फाए सी नरम ,मासूम और कोमल होती है पैदा
पर ईश्वर भी देता है मजबूत ,बज्र सा दिल उनके अंदर
उम्र के साथ साथ मासूमियत ,नरमाहट ,कोमलता
जाती है सदैव घट और बढ़ उनके भीतर ,
पर सदैव ही बढती जाती है मजबूती उनके दिल की
उनको हैं सहने कई प्राकृतिक ,शारीरिक और मानसिक आघात
झेलती आई है वो बचपन से बुढ़ापे तक वाद प्रतिवाद
हम कितना भी आधुनिकता का दावा कर लें
पर सहती आई हैं सदैव यह कोमल मासूम बेटियां..
चाहें हूई वो सीता या हूई वो द्रोपदी
हुआ है सदैव शोषण इन मासूम बेटियों का ही
समाज का दंश झेला है सदा ही बेटियों ने
कब तक ? या शायद कभी नहीं मुक्ति पाएंगी ये बेटियां
इस दारुन दुःख से -----------
Roshi Agarwal
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