भोर होते ही ,क्यो सो गई है जिन्दगी.
किस तरह के सघंर्ष मे,खो गई है जिन्दगी.
बढती हुई महंगाई मै,क्यो फिकर मे हो गई जिन्दगी.
दो जून रोटी की जुगाड मे,क्यो रो गई है जिन्दगी.
एक सपना पूरा करने की चाहत मे,
अरमान सारे धो गई है जिन्दगी.
आस निराश के दो रंगो मे
कैसी बदरंग हो गई है जिन्दगी.
रूपा
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