Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दर दर बिखरा दर्द

 

 

दर दर बिखरा दर्द
कैसे इन्सा हुआ इतना बेदर्द
हाथ उठा कैसे..? फूलो पर
वो तो खुशबू बिखरते चारों ओर
इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता
जो तथाकथित खुदा का फरिशता है
हाथ उठा कैसे मासूमो पर
कोई गुनाह नही किया था
क्या खता उनकी थी
खिलने से पहले ही गुलशन
उजाड दिया दहशतगर्दो ने
पेशावर हादसे पर निकला कुछ दर्द

 

 


रूपा शर्मा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ