Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घुमड़ घुमड़ के बरसे बादल

 

 

badal

 

 

 

घुमड़ घुमड़ के बरसे बादल
आई जब बरसात
बरसे वो निर्बाध गति से
पूरा दिन और रात,
वर्षा की बूदों से मेरा भीग गया है तन,
देख छटा वसुधा की अब.
पुलकित हो गया मन.
टर्र टर्र करते है दादुर
म्याव म्याव करे मोर,
झूम झूम कर नाच दिखाते
पंछी चारो ओर.
श्याम वर्ण के मेघ छा गये ,
नीलगगन के आंचल पर
सोच रही हूं मै भी वारू
तन मन ऐसे बादल पर.

 

 

 

Rupa Sharma

 

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