Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उष्म नही अब कोई बन्धन

 

उष्म नही अब कोई बन्धन ,
न ही शीतल कोई रिश्ता,
कोरी ख़ानापूरी का
मोहताज़ रह गया ,
अब हर रिश्ता.
जीवन की आपाधापी मे,
कौन कहां पर कब है छूटा,
ज़मीं से लेकर आसमान तक
लगता है हर कोई रूठा.
सम्बन्धो मे अब सबका,
हाथ तंग हो गया,
मीठापन नातों रिश्तों का ,
न जाने अब कहॉं खो गया.
हैप्पी होली दीवाली तक ,
अब हर त्योहार है सिमटा,
करबाचौथ और वडमावस में,
पति पत्नी का रिश्ता निबटा.

 

 


रूपा

 

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