Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक छॉंव की तलाश मैं

 

एक छॉंव की तलाश मैं
घूमा डार्लडाल. पार्तपात
रूके नहीं कदम हों दिन या रात।
कहे सूरज भी शीतल रश्मियॉं करने कोऌ
है उफ़ान मे नदी. नही बहाव कम करने को।
एक छॉंव की तलाश मैं
तीब््रा हैं आशायें. थके वदन नहीं्
चाह है किलकारी. रूदन का प्रश्न नहीं।
क्षीण है शक्ति कहा ऋ
सशक्त हैं पदचिन्ह यहॉं।
एक छॉंव की तलाश मैं
गगन विशाल है हमनें माना
अटल है पर जीत. कम पड़ रहा अंतरिक्ष।
जलन है तपन में बडीऌ है डर किसे
ज्वालामुखी अंगार हो रहे शीतल. छुअन से मेरी।
एक छॉंव की तलाश मैं।

 


रूपेश कुमार “राहत

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ