Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ए ज़िन्दगी बड़ी अजीब है तू

 

ए ज़िन्दगी बड़ी अजीब है तू,
कभी हसाती तो कभी रुलाती है तू,
हर हाथ की लकीर तू ही बनाती है,
अंधे को देखना और लंगड़े को भी दौड़ाना तू ही सिखाती है,
होगा वही जो तू चाहेगी,
दौड़ेगा वो जिसको तू चलाएगी,
रेस किसी की और जीत किसी और को दिलाती है,
जरा ये तो बता ज़िन्दगी तू आखिर क्या चाहती है,
इंसान राहे चाहे कोई भी चले,
चाहे पल पल वो तपती धुप में जले,
उस आग से लोहे को सोना तू ही बनाती है,
सच में ज़िन्दगी तू ही जीना सिखाती है,
तू ही जीना सिखाती है...

 

 

 

 

Sagar Mittal

 

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