बहुत मजबूत रिश्ता भी यकीनन टूट जाता है
हिफाजत से रखो फिर भी ये शीशा टूट जाता है
अजब शय है ये पैसा भी अजब इसकी कहानी है
किसी पे मुस्कुराता है किसी से रूठ जाता है
मुझे तुम ये कहॉ लेकर चले आए मेरे मित्रों
यहॉ तो अपना बेटा भी पिता को लूट जाता है
बहुत कोशिश करूं फिर भी तुम्हें समझा नहीं सकता
मेरी उम्मीद का सूरज क्यों अक्सर डूब जाता है
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रचनाकार - सागर यादव 'जख्मी'
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