नंदनवन मेँ रहता था
गीदड़ एक सयाना
चोर -उचक्कोँ से था उसका
रिश्ता बहुत पुराना
माथे पर राख लगाकर वह
गेरुआ वस्त्र पहनकर चलता था
भोले -भाले जानवरोँ को
साधु बनके छलता था
उतर गया चेहरे पर से मुखौटा
खुल गया सारा भेद
बंदर को अगवा करने के जुर्म मेँ
उसको हो गई जेल .
सागर यादव 'जख्मी'
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