Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इस प्यार को क्या नाम दूँ ?

 

बात उन दिनोँ की है जब मै फेसबुक पर बेहद सक्रिय रहा करता था.नये दोस्त
बनाना और उनसे चैट करना मेरा यह रोज का नियम था.एक दिन मेरे पास सुमन नाम
की एक लड़की का मित्रता निवेदन आया.मैने स्वीकार भी किया.मित्र बनने के
लगभग दो दिन बाद उस लड़की ने मेरे पास मैसेज किया,"हाय डीयर!"
दोस्तोँ, मै दुनिया की हर लड़की को अपनी बहन समझता हँ.उनके साथ एक भाई
जैसा बर्ताव करता हूँ.अत:अपने स्वभाव के अनुरूप ही मैने उसे रिप्लाई भी
किया, "हाय सिस्टर!"
फिर बातोँ का सिलसिला रन अवे पे आ गया.
"क्या आप दुनिया की हर लड़की को बहन का ही सम्बोधन देते हैँ ? "
" हाँ ,मै दुनिया की हर लड़की को बहन का ही सम्बोधन देता हूँ."
"वैसे आप लिखते बहुत अच्छा हैँ"
"धन्यवाद "
"भाई,आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई.सच मेँ आप बहुत महान हैँ."
"मै बहुत महान हूँ?वो कैसे ?"
"वो ऐसे कि आप दुनिया की गंदगी से अभी दूर हैँ."
"दुनिया की गंदगी?बहन,मै कुछ समझा नहीँ."
"भाई,मेरे स्कूल जाने का समय हो गया है.बाद मेँ बात करती हूँ.बाय टेक केयर."
"बाय टेक केयर."
पहले दिन बस इतनी ही बात हुई.मगर अगले दिन से रोजाना बातेँ होने
लगीँ.कभी-कभी तो चैट करते-करते 4 घंटे भी बीत जाते थे.हमारा रिश्ता
दिन-प्रतिदिन और भी मजबूत होता गया.मै सुमन को अपनी सगी बहन की तरह प्यार
करने लगा.सुमन भी मुझे मेरी सगी बहन की तरह प्यार करने लगी.हम दोनोँ एक
दूसरे से अपना सुख-दुख साझा करते.और अपने रिश्ते को जीवन भर जीवित रखने
की प्रतिज्ञा करते.
वक्त पंख लगाकर उड़ता गया.धीरे -धीरे राखी का त्यौहार नजदीक आ गया.एक दिन
सुमन ने मुझसे पूछा,"भाई,क्या मै आपको राखी भेज सकती हूँ?"
"क्योँ नहीँ ?बहन,यदि आप राखी भेजती हैँ तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी.ठीक
राखी के दिन डाकिये ने मेरे दरवाजे पे दस्तक दी.जब मै पार्सल खोलकर देखा
तो मेरी आँखेँ खुली की खुली रह गईँ.मुझे सुमन से ये बिल्कुल भी उम्मीद
नहीँ थी.पार्सल के अंदर छोटे से एक ताजमहल के साथ एक पत्र भी था.पत्र
मेँ लिखा था-
जनाब सागर!मै आपसे बेपनाह प्यार करती हूँ. मुझे अपने चरणोँ मेँ थोड़ी सी
जगह देने की कृपा करेँ.मै आपकी दासी बनकर रहूँगी.पत्र पढ़ते ही क्रोध से
मेरी आँखेँ लाल हो गईँ.मैने तुरंत ही अपना फेसबुक एकाउंट खोला और सुमन को
ब्लाक कर दिया.सिर्फ यहीँ नहीँ मैने उसके डाक पते पर भी एक पत्र भेजा
.जिसमेँ मैने उसे बहुत भला-बुरा कहा और भविष्य मेँ मेरे पास कोई पत्र न
लिखने की हिदायत भी दी.तब से लेकर आज तक सुमन का न तो कोई फोन आया और न
ही कोई पत्र.मगर उसके द्वारा भेजी गयी उसके मुहब्बत की निशानी(ताजमहल और
प्रेमपत्र)आज भी मेरे पास सुरक्षित है.समझ मेँ नहीँ आता कि मै इस प्यार
को क्या नाम दूँ?

 


लेखक- सागर यादव 'जख्मी'

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