Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहीँ पे राँझा बिकता है कहीँ पे हीर बिकती है

 

1.

कहीँ पे राँझा बिकता है कहीँ पे हीर बिकती है

कि पैसे के लिए नारी की अक्सर चीर बिकती है

ये कुदरत का करिश्मा है या वेश्या की अदाकारी

सुना है उसके कोठे पे हृदय की पीर बिकती है

2.

न बच्चे शोर करते हैँ न मम्मी मुस्कुराती है

मै जब वर्दी मेँ होता हूँ तो दादी सिर झुकाती है

यही घर था जहाँ हरपल खुशी के फूल खिलते थे

यही घर है कि अब भाभी अलग चूल्हा जलाती है

3.

कभी मंगल कभी शुक्कर कभी इतवार होता है

कलेँण्डर के सभी पृष्ठोँ पे कोई वार होता है

पिता -माता ,बहन -भाई सभी को भूल जाता है

किसी मजनूँ को जब लैला से थोड़ा प्यार होता है

4.

कोई मजबूर कहता है कोई पागल समझता है

मगर वो अपने भाई को सदा लक्ष्मण समझता है

मुहब्बत मेँ मजे कम और खतरे ढेर सारे हैँ

इसे बस तुम समझती हो या फिर 'सागर' समझता है

 

 

सागर यादव 'जख्मी'

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