जब भी मेरा करता मन
जनता की नाक मेँ करता दम
इलेक्शन का टाइम जब आता
मतदाता के पैरोँ पर गिर जाता
विजयी हो जाने पर जनता की
आँखोँ से ओझल हो जाता
संसद भवन मेँ आँख मूँदकर
कुर्सी पर बैठा होता
मै भी यदि नेता होता |
नित्य सवेरे मेरे रूम मेँ
एक सुंदर लड़की लायी जाती
मेरे प्यारे हाँथोँ से फिर
उसकी नथ उतारी जाती
खाँकी वर्दी वाला भी
मेरे पाँव का जूता होता
मै भी यदि नेता होता |
गाँव -गाँव मेँ,गली-गली मेँ
दारू की भट्टी चलती
पब्लिक प्लेश पर,चलती बस मेँ
रोज किसी की सील टूटती
हिन्दु -मुस्लिम लोँगोँ को मै
आपस मेँ लड़वा देता
पवित्र अयोध्या नगरी को भी
मुर्दाघाट बना देता
मीडिया की नजरोँ मेँ मै
खादी वाला गुण्डा होता
मै भी यदि नेता होता|
रचनाकार- सागर यादव 'जख्मी'
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