Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे कदमोँ की आहट को सदा पहचान जाती है

 

 

1.

मेरे कदमोँ की आहट को सदा पहचान जाती है

वो गहरी नीँद मेँ होती भी है तो जाग जाती है

मेरी गजलेँ मेरे मुक्तक उसी माँ को समर्पित हैँ

कि जिसके त्याग के आगे ये दुनिया हार जाती है

2.

किसी के खून से मै हाँथ अपने धो नहीँ सकता

मै अपनी राह मेँ काँटे कभी भी बो नहीँ सकता

तू मुझसे प्यार करती है मगर सच बात तो ये है

तू मेरी हो नहीँ सकती मै तेरा हो नहीँ सकता

 


सागर यादव 'जख्मी'

 

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