(प्रस्तुत कविता मेरी दोस्त नेहा चौबे जी को समर्पित है. जिन्होँने मुझ
पर अनेक एहसान किए हैँ
मै आजीवन उनका ऋणी रहूँगा.)
1.
गोरखपुर की रहने वाली|
मुझ पे जान छिड़कने वाली||
सुघर-सलोना रूप तुम्हारा|
सारे जग से लगता न्यारा||
दीन-दुखी की सेवा करती|
मुझे मदर टेरेसा लगती||
पुलिस-पिता की तुम हो बेटी|
सदा बनाती मीठी रोटी||
सदाचार का ज्ञान तुम्हेँ है|
भले जनोँ से प्यार तुम्हेँ है||
2.
सदा क्लास मेँ अव्वल आती|
प्रतिद्वंदी का मान घटाती||
मम्मी के चरणोँ की दासी|
तुमसे रहती दूर उदासी||
बड़े सवेरे तुम उठ जाती||
झटपट अच्छी चाय बनाती||
सबसे सुंदर सबसे अच्छी|
दुनिया झूठी बस तुम सच्ची||
कोयल जैसी कंठो वाली|
मै उपवन हूँ तुम हो माली||
3.
देवी जैसी पूजी जाती|
सभी जगह तुम आदर पाती||
संकट मेँ जो तुम्हेँ पुकारा|
तुमने उसको सदा उबारा||
ऊँच-नीच ना तुमने जाना|
सभी धरम को अपना माना||
सुमन सरीखा हृदय तुम्हारा|
तुमसे रौशन चाँद-सितारा||
पण्डित से भी तुम हो ज्ञानी|
दुनिया कहती यही कहानी||
4.
धन दौलत से बढ़कर जाना|
मुझको अपना साथी माना||
जो फिरता था मारा-मारा|
उस यतीम को दिया सहारा||
अमर प्रेम की अमर कहानी|
मेरे दिल की तुम हो रानी||
जब तक सूरज -चाँद रहेगा|
'सागर' तेरा दास रहेगा||
मुझसे बस इक वादा करना|
मुझको तनहा कभी ना करना||
-सागर यादव 'जख्मी'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY