Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुझको तनहा कभी ना करना

 

(प्रस्तुत कविता मेरी दोस्त नेहा चौबे जी को समर्पित है. जिन्होँने मुझ
पर अनेक एहसान किए हैँ
मै आजीवन उनका ऋणी रहूँगा.)

 


1.
गोरखपुर की रहने वाली|
मुझ पे जान छिड़कने वाली||
सुघर-सलोना रूप तुम्हारा|
सारे जग से लगता न्यारा||
दीन-दुखी की सेवा करती|
मुझे मदर टेरेसा लगती||
पुलिस-पिता की तुम हो बेटी|
सदा बनाती मीठी रोटी||
सदाचार का ज्ञान तुम्हेँ है|
भले जनोँ से प्यार तुम्हेँ है||

 

 

2.
सदा क्लास मेँ अव्वल आती|
प्रतिद्वंदी का मान घटाती||
मम्मी के चरणोँ की दासी|
तुमसे रहती दूर उदासी||
बड़े सवेरे तुम उठ जाती||
झटपट अच्छी चाय बनाती||
सबसे सुंदर सबसे अच्छी|
दुनिया झूठी बस तुम सच्ची||
कोयल जैसी कंठो वाली|
मै उपवन हूँ तुम हो माली||

 

 

3.

देवी जैसी पूजी जाती|
सभी जगह तुम आदर पाती||
संकट मेँ जो तुम्हेँ पुकारा|
तुमने उसको सदा उबारा||
ऊँच-नीच ना तुमने जाना|
सभी धरम को अपना माना||
सुमन सरीखा हृदय तुम्हारा|
तुमसे रौशन चाँद-सितारा||
पण्डित से भी तुम हो ज्ञानी|
दुनिया कहती यही कहानी||

 

 

4.

धन दौलत से बढ़कर जाना|
मुझको अपना साथी माना||
जो फिरता था मारा-मारा|
उस यतीम को दिया सहारा||
अमर प्रेम की अमर कहानी|
मेरे दिल की तुम हो रानी||
जब तक सूरज -चाँद रहेगा|
'सागर' तेरा दास रहेगा||
मुझसे बस इक वादा करना|
मुझको तनहा कभी ना करना||

 

 

-सागर यादव 'जख्मी'

 

 

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