Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नजर ना आ सकूँ खुद को मै इतनी दूर जाऊँगा

 

 

1.
नजर ना आ सकूँ खुद को मै इतनी दूर जाऊँगा
मै शीशे की तरह बेशक किसी दिन टूट जाऊँगा
अभी इक दूसरे के हम बहुत नजदीक हैँ पर कल
मुझे तुम भूल जाओगी तुम्हेँ मै भूल जाऊँगा

2.
लगाकर पंख साहस का फलक पे पाँव रखना है
सुना है अब पतंगे को शमाँ की माँग भरना है
हमेँ इक दूसरे से दूर मत करना जहाँ वालोँ
हमेँ इक साथ जीना है हमेँ इक साथ मरना है

3.
तुम्हेँ विस्की नहीँ मिलती हमेँ भी रम नहीँ मिलता
मुहब्बत के परिँदोँ को अगर जंगल नहीँ मिलता
जमाने मेँ दवा की सैकड़ोँ दुकानेँ हैँ लेकिन
हमारे दिल के जख्मोँ का कहीँ मरहम नहीँ मिलता

4.
पहरेदार गहरी ,निद्रा मेँ सो रहे हैँ
धन के लोभी धरम ,से विमुख हो रहे हैँ
सरकार की गंदी ,नीतियोँ के चलते 'जख्मी'
गरीब और गरीब,धनी-धनी हो रहे हैँ

5.
कोई पिता अपने,बेटे से जुदा ना हो
मेरे मौला वक्त,इतना बेवफा ना हो
मुझको ऐसा सफर,सनम अच्छा लगता है
मेरे साथ मेँ तुम हो,मंजिल का पता ना हो

 

 

-सागर यादव 'जख्मी'

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