दोस्तोँ,आज यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी का कहा मानता है तो लोग उसे
पत्नीभक्त कहकर बुलाते हैँ.मगर जब अपनी पत्नियोँ के हठ के आगे झुककर
ब्रह्मा,विष्णु और महेश ने महासती देवी अनुसूया की परीक्षा लेने जैसा
दुष्कर कार्य किया.तब किसी ने भी उन्हेँ पत्नीभक्त नहीँ कहा .
आज सभी पुरुष यही चाहते हैँ कि उनकी पत्नियाँ उनके ध्यान मेँ मगन
रहेँ,उनकी पूजा करेँ,उनकी दासी बनकर उनकी सेवा करेँ और अपने मन मेँ कभी
किसी पराये मर्द का विचार ना लाएँ.आज के समय मेँ यदि कोई स्त्री किसी
पराये मर्द के साथ पकड़ी जाती है तो उसको मौत की सजा मिलती है.मै पूछता
हुँ दुनिया का ऐसा कौन सा पुरुष है जब वह घर से बाहर निकलता है तो
खूबसूरत पराई स्त्रियोँ को देखकर उनसे शारीरिक संबंध बनाने की लालसा नहीँ
रखता?जब पुरुष अपनी इंद्रियोँ को बस मेँ नहीँ कर सकते .पराई स्त्रियोँ
से संबंध बनाने की इच्छा नहीँ त्याग सकते तो वे अपनी पत्नियोँ से महासती
देवी अनुसूया की तरह सती होने की उम्मीद कैसे रख सकते हैँ?यदि हम पुरुष
चाहते हैँ कि हमारी पत्नियाँ पतिभक्त हो तो सर्वप्रथम हमेँ पत्नीभक्त
होना पड़ेगा.पत्नीभक्त होने का आशय ये नहीँ है कि हम उनकी हर अनुचित
माँगोँ को पूरा करेँ और उनकी चरण-रज को अपने माथे चढ़ाएँ.पत्नीभक्त होने
का आशय स्त्रियोँ वह सम्मान और प्यार देना है जिनकी वे हकदार हैँ.तो देर
किस बात की आइए हम सभी पत्नीभक्त हो जाएँ.
-सागर यादव 'जख्मी'
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