Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक मजज़ूब के गुज़रते ही

 

एक मजज़ूब के गुज़रते ही
कोई जिंदा हुआ है मरते ही .
हू बहू साज़ होगया हूँ मैं
अपने काँधे पे साज़ ध्हरते ही
मैं परिंदा दिखाई देने लगा
पैड के पास से गुज़रते ही
आईना खुद संवर गया होगा
मेरे महबूब के संवारते ही
सांस लेने लगे दर - ओ - दीवार
ताक्चों में चराग़ धरते ही


....शाहिद बिलाल .........

 

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