Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज का आदमी

 

उजड़ी हैं गलियाँ
देखता न आदमी
लुट रहीं कलियाँ
सोचता न आदमी

 

अन्न देने वाला यहाँ
भूखा मर जाता है
प्रशासन के घर अन्न
रखा सड़ जाता है

 

पूँजीवादी जोंक खून चूसे जा रही है
चुपचाप खड़ा है बोलता न आदमी

 

जाग रहा हैवान
सोते हम रहेंगे
आँख मूंदे कब तक
बैठे हम रहेंगे

 

न्यायाधीश देश की
अनसुनी कथा सुनो
रस्ते पे छोड़ बेटी गूँगी
सड़कों की व्यथा सुनो

 

खेत बिके घर बिके बच्चे चाहें भूखे मरे
घूस लेना किसी से भी छोड़ता न आदमी

 

भाई अपने भाई का
दुश्मन बन जाता है
नफरतों की आग में
रिश्ता जल जाता है

 

धनवान हो गया है
स्वार्थ का खज़ाना है
दिखा रहा रूप पर
शीशा अनमना सा है

 

जंगलों को काट डाला कहाँ रहे पंछी
देख रहा सबकुछ सोचता न आदमी

 

भूखे पेट न्याय की
देवी को दिखा दो
घोटालों के दोषी को
फांसी पर चढ़ा दो

 

हवस का शिकार जो
बच्चियों को बना लें
ऐसे अपराधी को
तो ज़िंदा ही जला दें

 

जेल उन्हें लगती जैसे कोठे में वो बैठे हैं
गलतियों से अपनी सीखता न आदमी

 

उजड़ी हैं गलियां देखता न आदमी
लुट रहीं कलियाँ सोचता न अादमी

 

 

साहिल वर्मा

 

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