मजदूरी कब मज़बूरी मे तब्दील हो गई
पैसों के लिए अपने घर से दूरी इतनी ज्यादा हो गई।
हम तो पहले से ही समस्याओं से जूझ रहे थे
आज तो बस अमीरो के लिए ये महामारी हो गई।
हमारा तो दिल पक्का और घर कच्चा था
आज वो कच्ची झोपडी हमारे लिए महल हो गई।
आत्मनिर्भर तो तब भी थे, और अब भी है और कुछ नहीं बस
बस चुनाव के लिए वोट हमारी कीमती हो गई।
पैदल तो हम हमेशा ही थे, पता नहीं क्यों
आज सडक हादसों मे हम पर नजर पड़ गई।
हमारी छोटी सी चाय की दुकान नहीं खुल सकती साहब
क्यों की शराब तो अर्थव्यवस्था की मजबूत डोर हो गई।
नशे की चीजें जरुरत की चीजों से ज्यादा महँगी है
दो वक्त की रोटी की कीमत सिर्फ एक बोतल में अदा हो गई।
हम जानते है आत्मनिर्भर तो देश हम से ही था
शायद आज ये बात सब को समझ में आ गई।
✍️साक्षी राय
तेंदूखेड़ा जिला नरसिंहपुर
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY