Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

व्रत कथा नियम

 

मजदूरी  कब मज़बूरी मे तब्दील हो गई

पैसों के लिए अपने घर से दूरी इतनी ज्यादा हो गई।


हम तो पहले से ही समस्याओं से जूझ रहे थे

आज तो बस अमीरो के लिए ये महामारी हो गई।


हमारा तो दिल पक्का और घर कच्चा था

आज वो कच्ची झोपडी हमारे लिए महल हो गई।


आत्मनिर्भर तो तब भी थे, और अब भी है और कुछ नहीं बस

बस चुनाव के लिए वोट हमारी कीमती हो गई।


पैदल तो हम हमेशा ही थे, पता नहीं क्यों

आज सडक हादसों मे हम पर नजर पड़ गई।


हमारी छोटी सी चाय की दुकान नहीं खुल सकती साहब

क्यों की शराब तो अर्थव्यवस्था की मजबूत डोर हो गई।


नशे की चीजें जरुरत की चीजों से ज्यादा महँगी है

दो वक्त की रोटी की कीमत सिर्फ एक बोतल में अदा हो गई।


हम जानते है आत्मनिर्भर तो देश हम से ही था

शायद आज ये बात सब को समझ में आ गई।

                                         ✍️साक्षी राय 

                    तेंदूखेड़ा  जिला नरसिंहपुर 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ