Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शेर

 

सलीम शाहिद

मिट्टी का जिस्म लेकर चले हो तो सोच लो,
स रास्ते में एक समंदर भी आयेगा । ------- सलीम शाहिद

 

’ज़मील’ मजहरी

कुछ ढेर राख के हैं, कुछ अधजली सी लकड़ी,
आया था एक मुसाफ़िर सराये- जिंदगी में । ----- ’ज़मील’ मजहरी

 

’नासिख’

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत,
हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिये फ़िरते हैं । ------ ’नासिख’

 

Surender Kumar "Abhinn"

 "इंतज़ार "

 कह दिया "इंतज़ार करना कल तक के लिए "
टाल देंगे हम भी मरना कल तक के लिए....
समेट लेगा ख़त उनका आते ही अपने आप मे ,
पड़ेगा हमें सिर्फ़ बिखरना कल तक के लिए .... Surender Kumar "Abhinn"

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हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ