आलम का आधार होती है बेटियां
आलम का आधार होती हैं बेटियां।
रब का अनुपम तोहफ़ा होती हैं बेटियां।
आशियाने की बुनियाद होती हैं बेटियां।
खुदा की रहमत होती हैं बेटियां।
सदा निगाह-ए-नाज़ होती हैं बेटियां।
फ़ितरत से पाकीज़ा होती हैं बेटियां।
गंगा की पाक़ धारा होती हैं बेटियां।
आंगन की तुलसी-क्यारी होती हैं बेटियां।
आफ़ताब की तेज-सी होती हैं बेटियां।
पूर्णिमा के चांद-सी होती हैं बेटियां।
खुशियों की बौछार होती हैं बेटियां।
बसंत की बहार होती हैं बेटियां।
अब्बू की धड़कन होती हैं बेटियां।
अम्मी की संगिनी होती हैं बेटियां।
पायल की झंकार होती हैं बेटियां।
परिंदे की ऊंची उड़ान होती हैं बेटियां।
कुदरत का करिश्मा होती हैं बेटियां।
हर रिश्ते की जान होती हैं बेटियां।
आफ़त का इलाज होती हैं बेटियां।
जश्न का जलवा होती हैं बेटियां।
खूबसूरती का एहसास होती हैं बेटियां।
निश्छल मन की परी होती हैं बेटियां।
नारायणी का अवतार होती हैं बेटियां।
परस्तिश के पात्र होती हैं बेटियां।
बड़े खुशनसीब होते हैं वे अम्मी-अब्बू
जिनके घर जन्म लेती हैं बेटियां।
मैं घोषणा करता हूं कि यह मेरी मौलिक,स्वरचित एवं अप्रकाशित-प्रसारित रचना है और कॉपीराइट के नियमों का उल्लघंन नहीं करती।
समीर उपाध्याय
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