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Dr. Srimati Tara Singh
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हिंद के माथे की बिंदी:हिंदी

 

हिंद के माथे की बिंदी:हिंदी

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं संस्कृत मां की कोख से जन्मी हूँ।
मैं हर भाषा को सगी बहन मानती हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंदी के माथे की बिंदी हूँ।
मैं हिंदवासियों के रोम-रोम में बसी हूँ।
मैं हिंद देश के कण-कण में व्याप्त हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं शब्दों का अगाध और समृद्ध सागर हूँ।
मैं साहित्य का अद्भुत भंडार हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं हिंद की अभिव्यक्ति का सरलतम स्त्रोत हूँ।
मैं हिंद के सुमधुर संगीत की सूरावली हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं हिंद की गौरवमयी गाथा हूँ।
मैं काल को जीतनेवाली कालजयी भाषा हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका हूँ।
मैं हिंद की एकता की अनुपम परंपरा हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं हिंद की स्वतंत्रता का शंखनाद हूँ।
मैं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की आधारशिला हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं हिंद की आन, बान और शान का प्रतीक हूँ।
मैं विभिन्न भाषारूपी नदियों में महानदी के समान हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंद के माथे की बिंदी हूँ।
मैं हिंदी के ग्यारह राज्यों की राजभाषा हूँ।
मैं विश्व के दूसरे नंबर की बड़ी भाषा हूँ।

मैं हिंदी हूँ।
हिंदू के माथे की बिंदी हूँ।
मैं अपने आप में एक समर्थ भाषा हूँ।
मैं विश्व-भाषा बनने की पूर्ण अधिकारिणी हूँ।




समीर ललितचंद्र उपाध्याय
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