सबकी नज़र से देख़ो तोह मेरी मुस्कान है ,सबके लिए मैं खुश दिखती हूँ।
क्या मेरे अंदर दिल की गहराई को कोई समझा? सबके लिए क्या ग़म है मुझे ?
किसी को अपने दिल का दुख जता के भी क्या होगा,यह वही दुनिया है जिसको गमो में नमक डालने कि आदत है।
आँखें रात को रोती है , हर किसी को नहीं जताती हू कि यह वही है जो रातों को नहीं सोती है।
हसना भी कला है,सबको खुश देखने के लिए यह कला भी मुझे मंजूर है , पर अपने ही है जिनकी आँखों में धूल लगी है… तभी तो हस्ती हुई यह जान तन्हाइयों में जीती है।
कोई कहता है दर्द इंसान को हिम्म्त देता है,पर मैं कहती हु यह दर्द भी हर किसी कि किस्मत में नहीं ,
इसको सह पाना भी हर किसी का काम नहीं,फिर भी यह हिम्म्त ही है…ज़िस्ने हर तरह कि तकलीफो में भी हसने का और आगे बढ़ते चलने का जज़बा दिया है।
मैं वो शीशा हु जो आज भी नही टूटी हु। ……
लेखक :संचिता
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