Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दलदल

 

daldal

 

 

सूरज में आग है तभी वो दुसरो केलिए खुद जलती है ....

रात में खालीपन है तभी अंधेरो में वो ख़ामोशी देती है..

फूल में कांटे है फिर भी वो अपनी महक से हर दिल को खुशनुमा करती है...

वक़्त बीत जाता है और वो अपनी कदर समझा जाता है....

प्रकृति का हर कण दुसरो की ख़ुशी के लिए निछावर होती है....

फिर कैसे मनुष्य जो सबसे श्रेष्ठ कहा जाता है,वो भूल गया इंसानियत को ??

कैसे वो इतना मतलबी और स्वार्थी हो रहा है?

कैसे इंसान थाम रहा हैवानियत को ??

डूब रहा है मानव यह कौन से दल -दल में ??

 

 

 

Written by--Sanchita

 

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