एक मोढ़ ऐसा आया जहाँ चलते चलते मैं रूक गई....
ऐसा ना था की मैं आगे चलने से डर गई ??
लग रहा था हर रास्ता मैं जानती हुँ...
भरोसा ठाट की हर सफर में साथ है तेरा .....
पर कदम डगमगा गए जब तुमने साथ छोड़ दिया....
ऐसा लगा अचानक वक़्त ने मुझको अकेला छोड़ दिया...
असमझस में थी मैं उस राह पर जहां अकेला छोड़ गए थे तुम...
अभ सिर्फ इंतज़ार है उस वक़्त पर जो लौटा देगा मुझको मेरा खोया वजूद।
संचिता
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY