डर उन् लोगो को था अंधेरों में खो जाने का,
डगमगाते उनके कदम है जिन्होंने आँखों को बंद करने की आदत को था चुन्न लिया...
जल्द वक़्त के खेल ने हमको अंधोरो में जुगनूओ को ढूंढ ने का हुन्नर सिखला दिया...
ज़िन्दगी में चलना काफी ना था,हालातो से लड़ कर जीना यहाँ ज़रूरी था...
दौर तोह सभ ही रहे थे,पर हँसकर जीना यहाँ आसान ना था...
गम तोह सबके पास था,पर खुशी के खजाने को हर कोई ना जाने क्यों अपने सिवाए , दुसरो में ही ढूंढ रहा था ...
जवानी है तोह बुढ़ापा भी आएगा , यह सबको पता है...
फिर भी इंसान समझता है, इस ज़िन्दगी को अपने ढंग से जी लेने में उसका ज़ोर है..
खूब पैसा कमाने की होड़ में यहाँ, हर कोई भाग रहा है ...
क्या मतलब ऐसे पैसे की दौर का,जब आखिर में सबकुछ छोड़ कर मिटटी में ही तू समां रहा है..
By sanchita
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