Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हथेली पर रखकर, नसीब अपना

 

 

hathelipar

 

 

 

हथेली पर रखकर,नसीब अपना
क्यूँ हर शख्स,मुकद्दर ढूँढ़ता है !
अजीब फ़ितरत है,उस समुन्दर की

जो टकराने के लिए,पत्थर ढूँढ़ता है.

 

 

Tiya Rai

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ