Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ज़िन्दगी से चाहा

 

 

chaha

 

 

 

जब ज़िन्दगी से कुछ ना चाहा ,
तब इस ज़िन्दगी ने बिन मांगे दे दिया ?
जब मांगा ज़िन्दगी से कुछ तब ना जाने या तोहw देर से दिया या फिर नहीं दिया ?
क्या पाया और क्या खोया अभ इसका हिसाब हमने छोड़ दिया
अभ इस ज़िन्दगी से हर शिकवे और गिलो को हमने था भुला दिया
जब खुद पे है भरोसा और चाह तोह जानते है हम पाएंगे एक दिन वो भी जो हमने था खो दिया
वक़्त और तक़दीर को हमने कभी दोष ना है दिया
हमको पता है इंसान में अगर कुछ पाने की सच्ची ख्वाइश हो ,
तोह हर मुश्किल को वो पार कर जायेगा
ज़िन्दगी का दूसरा नाम ही है हर पल हिम्मत और जोश से आगे बढ़ते जाना
तोह फिर क्यों यह मंन अभ अँधेरी राहों पे चलने से घभरायेगा ?
ज़िन्दगी से अभ हमने कुछ चाहना है छोड़ दिया ..

 

 

कवित्री
संचिता

 

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