Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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khoj

 

कोई यहाँ पाने की चाह में भटक रहा था
तोह कोई सबकुछ पा कर भी यहाँ अकेला था

 

कोई ख़ुशी की तलाश में अपना आज गवा रहा था
तोह कोई शोहरत की आस में अपनों से लड़ रहा था

 

कोई दुखी हो कर भी सुख की आस में दुसरो में ख़ुशी तलाश रहा था
तोह कोई अपने किरदारों को निभाते निभाते अपने को ही भुला रहा था
कोई सवालो के दल -दल में खुद को डूबा रहा था

 

 

इंसान आज की आपा धापी में इतना खो रहा था
जितना देखो इस दुनिया के लोगो को मेरा मंन उतना ही हैरान हो रहा था
इंसान यहाँ खुदसे ही जुझ रहा था

 

 

 

कवित्री
संचिता

 

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