Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ

 

maa

 

 

 

माँ तेरे आँचल में वो बचपन कितना प्यारा था..

तेरे कदमो में माँ मेरा यह जाहा बस्ता है ....

तेरे हाथो से बनी स्वादिष्ट भोजन को आज भी यह मन तरसता है....

तेरा मुझको लोरी सूना कर सुलाना आज भी माँ यह दिल चाहता है...

माँ कभी तू मेरी सहेली ,कभी मेरी शक्ति बनी ..

कभी तूने अध्यापिका की तरह अनुशासन का ज्ञान दिया ...

कभी तू कितनी कोमल ,सरल ,ममतामयी रही ....

कभी तू मेरी प्रेरणा बनी ....

तूने है समझाया की नारी के है अनेक रूप ...

फिर भी हार रूप में है नारी बहुत खूब ...

माँ मेरी हर ख़ामोशी और गम को तूने है समझा..

तेरे जैसा माँ हो ना पायेगा मेरे जीवन में कोई दुझा..

तेरी ममता के आगे हर रिश्ता है फीका ...

तेरी ऊँगली पकड़कर चलना है मैंने सीखा..

माँ ही था वो पहला शब्द मैंने था सीखा...

कभी माँ तूने अपनी परेशानियों को मुझ तक ना आने दिया..

तूने सिखाया दुनिया के कितने ही तकलीफो में भी हिम्मत से आगे बढ़ना...

मेरी हर ख़ुशी में माँ तूने अपनी ख़ुशी है पायी..

माँ मेरे जीवन में तोह तू भगवान का रूप लेकर है आई...

आज भी माँ तेरी याद से देख मेरी आँखें है भर आई ....

मेरे दिल में माँ तू सदा है समायी .....

 

 

 

संचिता

 

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