Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी कलम लिखती रहेगी ..

 

 

kalam

 

ज़माने ने कहा मुझे एक नारी हो कर लिखना शोभा नहीं है देता ?
दुनिया ने समझाना चाहा नारी का कर्म है परिवार को संभालना, ..
ना है नारी यह कलम और किताब के लिए ?

 

सबको हसकर सुना मैंने ,यह वही ज़माना है जो आज भी नारी को सुरक्षित समाज ना दे पाया है ?
यह वही दुनिया है जो आज भी नारी को दहेज़ की आग में जलाता है ?
यह वही समाज है जहा आज भी बेटी बोझ समझी जाती है ?
और यह लोग ही फिर नारी पे ज्ञान कैसे है दे पाते ?

 

यह समाज फिर किस बिना पर नारी के अधिकारों और प्रगति की बात करता है ?
मेरी कलम ना रुकेगी इस समाज या ज़माने के कहने पे ..
मेरी कलम ना सिर्फ मेरा अभिमान है ,बल्कि यह कलम आईना है इस असली समाज को दर्शाने का …
कलम में है ताक़त बदलाव और क्रांति लाने का …

 

खोखली सोच से परे है मेरी कलम जो लिखती रहेगी ..
और ना यह कलम अभ किसी ज़माने या समाज से अभ डरेगी …

 

 

Written and copyrighted by-Sanchita

 

 

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