खुदसे खुद्की जंग है अधूरी,
दिल ना जाने क्या है मज़बूरी,
अपनों से भी अभ हो गयी है दुरी
फिर भी इस जंग को लड़ने की हिमायत है मुझमें पूरी..
हर ख़ुशी का हक़दार हो वो
मेरी हर सांस का जिया हुआ पल है वो
गम न है अगर मुझको न अपना समझ पाया वो,
खुदा से फरियाद है की मेरे जनाज़े पर रुक्सत करने आये वो,
मेरी कफन को सकून मिलता अगर फूलों की चादर चढ़ा jaaye वो ....
संचिता घोष
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY