मोहबत हर रूप में इंसान को कुछ ना कुछ सिखलाती है
कभी यह मोहबत हीर राँझा की प्रेम कहानी है
कभी यह माँ का उसके बच्चे केलिए ममता का रूप है
कभी यह अनकहे शब्दों की निगाहोँ से हुई जुस्तुजू है
कभी यह दर्द देता है ,तोह कभी यह गम देता है
कभी यह ख़ुशी देता है , तोह कभी यह त्याग का दूसरा नाम है
कभी यह मोहबत दिलो को तोड़ता है , तोह कभी यह दिलो को जोड़ता भी है
कभी किसीकी हँसी में मोहबत है , कभी यह किसीकी यादों में आंसू बहाना है
कभी यह मोहबत किसीका इंतज़ार है ,कभी यह दुआओं में पाने की इल्तेजा है
मोहबत रब की इबादत का अनमोल तोहफा है
यह मोहबत अपनापन और प्यार का मोल समझाती है
मोहबत ना मानती है कोई भेद भाव को ,ना कोई धर्म को ,ना मानती है दैशों की सीमाओं को ,ना कोई उम्र को
कोई इस मोहबत पे कुर्बान है , कोई इस में डूब जाने को तैयार है
कोई मोहबत में शायर हुआ ,कोई इसमें दीवाना हुआ
मोहबत संघर्ष और हिम्मत को अपने साथ लाती है
टूटकर फिर आगे चलना मोहबत है
मोहबत इबादत है तोह यह बन्दगी भी है
इंसान को कठोर से मोम बनाती है यह मोहबत
पहली बरसात की फुहार में भीघने के जैसा है यह मोहबत
अंधेरों में भी प्रकाश बन कर उजाला करती है यह मोहबत
किसीके लिए मोहबत में अजब नशा है
किसीके लिए हर दर्द की दवा है
बिन मोहबत इंसान का जीना दुश्वार है
कवित्री
संचिता
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