यह सुबह ना थी मायूस आज ,
फ़िज़ाओं में था एक अलग सा एहसास।
आज ना थी बातों में वो हिचकिचाहट ,
आज हवाओं ने रुखना था मोढ़ा।
आज आसमान में ना था वो अंधेरापान ,
आज का दिन था कुछ अलग,
जहाँ सब कुछ कितना हसीन था.
क्या बदला व सच था ??
या मेरा एक सपना था ??
या सिर्फ कुछ पलों का एक हसीन एहसास था ??
ज़िन्दगी ने हर मोढ़ पर समझा दिया था ,
की आगे का रास्ता कठिन होगा ,
पर हिमायत ने हर वक़्त मुझे हो सला दिया था।
वक़्त तोह होता ही हैरेत की तरह ,
जो कबच ला जाता है पाटा भी नहीं चलता।
फिर भी पता नहीं मन करता है वक़्त को रोक लू ,
और कहु की थम जा और चल मेरे साथ। …
लेखिका-संचिता
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