कबतक ख़ामोशी की दीवार से रिश्तों को तू उलझायेगा ?
कभी तोह इस चुप्पी को तू तोड़ कर ,आगे पहल कर पायेगा ?
तभी गलत्फैमियों के बादलो को तू दूर कर पायेगा ?
फिर से शब्दों के सैलाब को रिश्तो के दरमियान आना होगा ?
इस अहंकार और अभिमान के पहाड़ को तुझे ही तोड़ना होगा ?
कभी तोह प्यार और अपनेपन की बरसात में तुझे भीगना होगा ?
तभी तोह इन्द्रधनुष रंगो से भरपूर यह रिश्ता तेरा अपना हो पायेगा ?
तभी तोह इस रिश्ते में खुदको उमंग के रंग से फिर रंगा पायेगा ?
जब तू इस दुनिया से जायेगा ,अपने साथ इन्ही रिश्तो से मिला प्यार सिर्फ ले जायेगा ?
फिर कैसे सोच लिया इस रिश्ते को इतनी आसानी से तू अपने से जुदा कर पायेगा ?
रिश्ते को नया मौका देकर ही तू फिर से रिश्ते को मजबूत कर पायेगा ?
कवित्री
संचिता
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