Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिश्तो की डोर

 

कबतक ख़ामोशी की दीवार से रिश्तों को तू उलझायेगा ?

कभी तोह इस चुप्पी को तू तोड़ कर ,आगे पहल कर पायेगा ?

तभी गलत्फैमियों के बादलो को तू दूर कर पायेगा ?

फिर से शब्दों के सैलाब को रिश्तो के दरमियान आना होगा ?

इस अहंकार और अभिमान के पहाड़ को तुझे ही तोड़ना होगा ?

कभी तोह प्यार और अपनेपन की बरसात में तुझे भीगना होगा ?

तभी तोह इन्द्रधनुष रंगो से भरपूर यह रिश्ता तेरा अपना हो पायेगा ?

तभी तोह इस रिश्ते में खुदको उमंग के रंग से फिर रंगा पायेगा ?

जब तू इस दुनिया से जायेगा ,अपने साथ इन्ही रिश्तो से मिला प्यार सिर्फ ले जायेगा ?

फिर कैसे सोच लिया इस रिश्ते को इतनी आसानी से तू अपने से जुदा कर पायेगा ?

रिश्ते को नया मौका देकर ही तू फिर से रिश्ते को मजबूत कर पायेगा ?



कवित्री
संचिता

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