Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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Shaayari--23

 

 

shayariyan

 

 

परिंदा पंख फैला कर आज़ादी चाह रहा था
हैरान था वो यह देखकर की इंसान आस्मां में बारूद की बू फैला रहा था


जिनके इंतज़ार में हमने उम्र बिता दी
उसीने एक दिन मुझे बेगाना कहकर मेरी हस्ती मिटा दी

 

दुःख के बादल जब मन को घेर रहे थे
कलम की स्याही तब अल्फाज़ो में नगमो की तलाश कर रहे थे


कसूर न तेरा था ,ना मेरा
कसूर उस सफर का था जो ना तेरा था ,ना मेरा


ज़िन्दगी के सवालो में उलझे हुए थे इस कदर
की हिसाबों की चाह में हम भटकते रहे दर बदर



दिल - ऐ - नादान की गुज़ारिशो में हम इस कदर खोए थे
याद नहीं कब हम आखरी बार सुकून से सोए थे



कोई खून करके कातिल कहलाया
पर जो दिल को शीशे की तरह तोड़ गया
वो क्यों नहीं खुद्की गुस्ताख़ी से था शरमाया ?


 

कौन कहता है हम लिखते है ज़माने के लिएहम तोह लिख्रते है ,इस ज़माने को भुलाने के लिए

 


BY SANCHITA

 

 

 

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