रिश्ते प्यार और विश्वास से बनी नाज़ुक डोर होती है
जो ना निभा पाया इसकी नज़ाकत को ,वो इंसान खुद को आखिर में कमज़ोर और अकेला पाता है
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कोई बेगाना हो कर भी ,यहाँ चंद पलो में अपना बन जाता है
कोई शौहरत की चाह में ,यहाँ अपनों को भूल जाता है
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जीवन में हर मोड़ पे संघर्ष है
यहाँ डठकर आगे बढ़ने वाला सफलता पाता है
संचिता
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