ना जाने वक़्त की कैसी थी यह आज़माइश ....
ना समझे वो ख्वाइशों की उड़ान को ..
ना जाने कैसे कर दी उसने इश्क़ तक की नुमाइश ....
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
वो पल जैसे बयां कर रहे थे खूबसूरत प्यार के अफ़साने...
उनकी एक झलक को हम जैसे थे दीवाने...
गुज़रे हुए वक़्त थे बड़े सुहाने...
एक दिन यह सपना टूट गया जब वो कह गए की हम है अब उनके बेगाने...
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------कोई शोहरत की होड़ में यहाँ अपनों को है भूल जाता...
कोई बेगाना हो कर भी सिर्फ प्यार की चाह में चंद पलो में अपना है बन जाता...
कोई तुफानो से लड़कर खुद को फौलाद है बना जाता...
इंसान चाहे तोह खुद को तराश कर खुद्की पहचान है बना जाता...
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
संचिता
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY