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शायरी-४

 

 

shayari

 

 

वो ख़ुशी ही क्या जिसमें दिल फनाह ना हो ..

वो मोहबत ही क्या जिसमें इज़हार ना हो ....

वो इंसान ही क्या जिसमें जज़्बात ना हो.
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हालातो से लड़ जाना दिलदारी थी...

जीत कर भी हार जताना तेरी खुद्दारी थी...

पर खुदको बदल देना तेरी क्या समझदारी थी??.

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दुनियावालो ने दर्द पे नमक थे डाल दिए..फिर जब हम आंसू बयां लगे..

तोह हमसे पूछ बैठे की किसने तुमको गम है दिए.??..

क्या बयां करे दिल का हाल ? किसको बताये हर पल उनकी याद में हम कैसे जीए?
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नाज़ुक होती है रिश्तों की डोर,

ना चलता इसपे कोई ज़ोर,

हर मोड़ पे यह है हमको .आज़माता..

कौन अपना और कौन पराया है यह सही वक़्त पे है दिखलाता...

 

 

 

Written  by-Sanchita Ghosh

 

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