मेरी रूह में तू खुशबू की तरह जैसे बस सी गई हो
तेरी यादों के सहारे जैसे यह दिल धड़कता हो
मेरी नज़रे हर पल जैसे तुझको ही ढूंढती हो
ना समझ है यह मंन ,जो नही समझता की जुड़कर भी हम कितने जुदा है
तुम्हारे प्यार को मैंने जैसे अपने आँचल में बाँध लिया है
पता ही ना चला इस मौसम की तरह कब तुम इतना बदल गए ?
मेरी हर सांस में जैसे तेरा एहसास बस सा गया है
तेरे बिन हर लम्हा जैसे साल बन गया है
तेरे साथ ना होने की कमी बहुत खलती है
पर तेरे साथ बिताया हुआ हर पल जैसे मुझे जीने की वजह दे जाता है
जिस मोड़ पर छोड़ कर तुम गए थे ,आज भी उसी मोड़ पर मुझे तेरा इंतज़ार रहता है
कवित्री
संचिता
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