कितनी आसानी से हमको इल्ज़ामों से वो नवाज़ के चले गए
हमको बेइंतिहा दर्द दे कर आंसुओं से वो रुला गए
हमको ना कह गए की कहा हमसे कमी हो गई
हमारी हर ख़ुशी को जैसे वो अपने साथ ले कर चले गए
जब तक समझ आता हमे कुछ तब तक इस दिल को शीशे की तरह वो तोड़ गए
पता ना चला की कब हम उनपे इतने निर्बार हो गए
उनका बिछड़ना जैसे मेरी रूह का मुझसे जुदा हो जाना था
वो बीच मझदार में हमको अकेला ना जाने कैसे कर गए
पर अभ वक़्त का पड़ाव कुछ अलग था
अब हम गिरकर भी उठना सीख गए
तेरे हर गम को अभ हम पीछे छोड़ कर आगे है चल दिए
तेरे जाने से हम जीवन का असली अर्थ थे समझ चूके
अभ हर आघात से हम निडर हो कर लड़ना थे सीख चुके
कवित्री
संचिता
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